Son Of Sardar 2 Review: सन ऑफ सरदार 2 एक ऐसी फिल्म है जो दर्शकों को बड़े सितारों, चमकदार सेट्स और energetic गानों के सहारे हँसाने और बाँधने की कोशिश तो करती है, लेकिन अंत में एक असमंजस और थकावट भरा अनुभव दे जाती है। यह फिल्म सीक्वल के नाम पर सिर्फ पुराने फॉर्मूले को दोहराने की कोशिश लगती है, बिना किसी ठोस कहानी या भावना के।
कहानी अजय देवगन के किरदार के इर्द-गिर्द घूमती है जो तलाकशुदा हैं और अचानक एक बेहद जटिल पारिवारिक परिस्थिति में फँस जाते हैं। मृणाल ठाकुर की एंट्री कहानी में होती है, जिनका परिवार सीमा पार से जुड़ा है। इन पारिवारिक और सांस्कृतिक मतभेदों को हास्य में ढालने की कोशिश की गई है, लेकिन इन दृश्यों में न गंभीरता दिखती है न ही वास्तविक मज़ा।
मृणाल ठाकुर जैसी सशक्त अभिनेत्री को जिस तरीके से प्रस्तुत किया गया है, वह प्रभाव छोड़ने में असफल रहता है। उनके संवाद और उच्चारण दर्शकों से जुड़ने के बजाय उन्हें खटकते हैं। दीपक डोबरियाल जैसे कुशल कलाकार को कॉमेडी के नाम पर ऐसे दृश्य दिए गए हैं जो न तो मजेदार लगते हैं और न ही उनके स्तर के अनुरूप हैं।
फिल्म में हास्य के प्रयास ज़्यादातर forced लगते हैं। मजाकिया पल कहीं-कहीं आते हैं लेकिन उनमें depth या timing की कमी महसूस होती है। ऐसा लगता है जैसे स्क्रिप्ट और डायलॉग्स को hurried तरीके से लिखा गया हो।
दृश्यात्मक रूप से फिल्म रंगीन और भव्य लगती है। लोकेशन्स और सेट डिज़ाइन में मेहनत की गई है, गाने भी high-energy हैं लेकिन इनमें originality और असर की कमी है। कुछ गाने केवल शोर बनकर रह जाते हैं — सुनने में कम, दिखाने में ज़्यादा।
क्लाइमेक्स में कहानी और अधिक उलझ जाती है, और दर्शक एक स्पष्ट निष्कर्ष की उम्मीद में थकने लगते हैं। दृश्य इतने confusing और अचानक आते हैं कि हँसी के बजाय frustration होने लगती है।
सन ऑफ सरदार 2 एक ऐसी फिल्म है जो बड़े नाम और रंगीनता के बावजूद दर्शकों को जोड़ पाने में विफल रहती है। इसमें नयापन, गहराई और सच्चे मनोरंजन की भावना की कमी है। यह फिल्म देखने के बाद दर्शक यही सोचते हैं — “हँसूं, समझूं या छोड़ दूं?”
Rating: 1/5