Inspector Zende Movie Review: नेटफ्लिक्स पर आई नई फिल्म Inspector Zende एकदम अलग तरह का कॉप ड्रामा है। जब भी पुलिस पर बनी फिल्म का नाम आता है तो दिमाग में ज़्यादातर हाई-ऑक्टेन एक्शन और चिल्लाते-चिल्लाते डायलॉग्स वाले सीन आते हैं। लेकिन यह फिल्म उस स्टीरियोटाइप को तोड़ती है और पुलिस अफसर को बहुत ही असली, मजेदार और इंसानी अंदाज़ में दिखाती है।
फिल्म की कहानी असली पुलिस अफसर मधुकर ज़ेंडे पर आधारित है, जिन्होंने चालाक और खतरनाक अपराधी चार्ल्स शोभराज को पकड़कर सुर्खियां बटोरी थीं। कहानी का प्लॉट सीधा है – शोभराज भाग चुका है और उसे पकड़ने का जिम्मा ज़ेंडे और उनकी टीम पर है। लेकिन इस सीधी-सी लगने वाली कहानी को डायरेक्टर चिन्मय मांडलेकर ने बहुत ही हल्के-फुल्के और मजेदार ढंग से पेश किया है। यहाँ पुलिसवाले न तो किसी रोहित शेट्टी फिल्म की तरह हवा में गाड़ी उड़ाते हैं और न ही बड़े-बड़े चेस्ट थंपिंग डायलॉग बोलते हैं। बल्कि यहाँ वे आम इंसान की तरह दिखते हैं – हंसते हैं, घबराते हैं, गलतियाँ करते हैं और फिर भी अपनी ड्यूटी निभाते हैं।
मनोज बाजपेयी का काम यहाँ सबसे बड़ा आकर्षण है। उन्होंने इंस्पेक्टर ज़ेंडे का रोल इतनी सहजता से निभाया है कि एक पल को भी यह रोल नकली नहीं लगता। उनके चेहरे के हाव-भाव से लेकर छोटे-छोटे रिएक्शन्स तक सब कुछ असली पुलिसवाले जैसा लगता है। वह कॉमिक टाइमिंग भी लाते हैं और सीरियस मोमेंट्स में उतने ही दमदार नज़र आते हैं। मनोज बाजपेयी का यह परफ़ॉर्मेंस दिखाता है कि वह किसी और लीग के एक्टर हैं।
चार्ल्स शोभराज का रोल निभाने वाले जिम सर्भ फिल्म की दूसरी जान हैं। उनका स्वैग, चालाक मुस्कान और खतरनाक करिश्मा रोल को और भी ज़्यादा इंटेंस बना देता है। कई सीन ऐसे हैं जहाँ आप उनसे नज़रें नहीं हटा पाते। खासकर गोवा में ज़ेंडे और उनकी टीम द्वारा शोभराज को पकड़ने वाला सीक्वेंस फिल्म का हाइलाइट है। यह हिस्सा रोमांचक भी है और मजेदार भी, और दर्शकों को सीट से हिलने नहीं देता।
गिरिजा ओक ने विजया ज़ेंडे का किरदार निभाया है और उन्होंने स्क्रीन पर ताज़गी ला दी है। उनके किरदार के बिना यह कहानी अधूरी लगती। सबसे दिलचस्प बात यह है कि विजया और ज़ेंडे के बीच की केमिस्ट्री फिल्म का एक भावुक और प्यारा हिस्सा बन जाती है। दोनों का रिश्ता दर्शकों को असली और सहज लगता है, यही वजह है कि फिल्म में यह जोड़ी लंबे समय तक याद रहती है।
फिल्म की कॉमेडी का बड़ा हिस्सा भाऊ कदम और हरीश दुधाडे लेकर आते हैं। भाऊ कदम का पाटिल वाला किरदार और हरीश दुधाडे का जेकब – दोनों ही अपने-अपने अंदाज़ में कहानी को हल्का बना देते हैं। उनकी वजह से कई सीन हंसी से भर जाते हैं और क्राइम-थ्रिल के बीच दर्शकों को रिलैक्स होने का मौका मिलता है।
तकनीकी पक्ष पर आएँ तो फिल्म का लेखन चुस्त है। स्क्रिप्ट एकदम साफ-सुथरी और मजेदार है, जिसमें न कहीं खिंचाव है और न ही अनावश्यक ड्रामा। कैमरे का काम भी बढ़िया है – मुंबई और गोवा की लोकेशन स्क्रीन पर जीवंत लगती है। म्यूज़िक और बैकग्राउंड स्कोर हल्के-फुल्के और सही टाइमिंग पर आते हैं।
डायरेक्टर चिन्मय मांडलेकर की सबसे बड़ी जीत यह है कि उन्होंने इंस्पेक्टर ज़ेंडे को नायक नहीं, बल्कि इंसान की तरह दिखाया है। वह सही भी करता है, ग़लत भी, लेकिन अपनी मेहनत और लगन से काम पूरा करता है। यही असल हीरोइज़्म है और यही इस फिल्म को खास बनाता है।
कुल मिलाकर Inspector Zende एकदम फ्रेश और अलग तरह की कॉप फिल्म है। इसमें थ्रिल है, हंसी है, रिश्तों की गहराई है और सबसे बढ़कर शानदार एक्टिंग है। मनोज बाजपेयी और जिम सर्भ की टक्कर फिल्म की जान है, गिरिजा ओक ने इसमें खूबसूरत इमोशन जोड़े हैं और भाऊ कदम-हरीश दुधाडे ने कॉमिक टच दिया है।
अगर आप इस हफ़्ते कुछ नया और मजेदार देखना चाहते हैं तो यह फिल्म बिल्कुल मिस न करें। यह सिर्फ़ एक कॉप ड्रामा नहीं, बल्कि हंसी और रोमांच का ज़बरदस्त कॉम्बिनेशन है।
Rating: 3.5/5