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Dhadak 2 Review: जब आप धड़क 2 देखने थिएटर में बैठते हैं, तो शुरुआत में लगता है कि शायद ये एक और रोमांटिक ड्रामा होगा, जिसमें प्यार, समाज का विरोध और एक इमोशनल क्लाइमेक्स होगा। लेकिन जैसे-जैसे कहानी परत दर परत खुलती है, आपको अहसास होता है कि ये फिल्म सिर्फ एक प्रेम कथा नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक कहानी है, जो जाति, पहचान और असमानता जैसे मुद्दों को बड़ी सादगी और सच्चाई के साथ पेश करती है।

फिल्म की सबसे बड़ी खूबी ये है कि ये ज़ोर-ज़बरदस्ती से कोई मैसेज नहीं देती। यह फिल्म आपको भाषण नहीं सुनाती — यह चुपचाप अपना असर छोड़ती है। इसकी खामोशी, इसकी रफ्तार और इसके किरदारों की असहायता ही असली commentary बनती है। यह फिल्म चीखती नहीं, लेकिन हर सीन में आपको अंदर से झकझोरती है।

सिद्धांत चतुर्वेदी ने इस फिल्म में जिस ईमानदारी से अभिनय किया है, वह लंबे समय तक याद रहेगा। उनका किरदार सिर्फ एक लोअर कास्ट लड़का नहीं, बल्कि वह हर युवा की आवाज़ है जो अपने हक़, सम्मान और पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है। तृप्ति डिमरी का अभिनय शांत, पर प्रभावशाली है। उनके और सिद्धांत के बीच का रिश्ता किसी भी ‘बॉलीवुड रोमांस’ जैसा नहीं लगता — यह सच्चा, उलझा हुआ और दिल को छू लेने वाला है। कोई बड़े संवाद नहीं, कोई फिल्मी इज़हार नहीं — बस छोटी-छोटी नज़रों की बातें, और यही इस प्रेम कहानी को खास बनाता है।

फिल्म की दुनिया बहुत वास्तविक लगती है। निर्देशक शाज़िया इक़बाल ने पूरी कहानी को इस तरह फिल्माया है कि हर सीन ऐसा लगता है मानो आपके आसपास का ही कोई हिस्सा हो। कैमरा कैरेक्टर की नज़र से दुनिया को दिखाता है — जिससे दर्शक और कहानी के बीच की दूरी लगभग ख़त्म हो जाती है।

सपोर्टिंग कास्ट की बात करें तो सौरभ सचदेवा एक ऐसे हिटमैन की भूमिका में नज़र आते हैं जो पूरी कहानी की दिशा ही मोड़ देता है। उनका किरदार सिर्फ रोमांच नहीं, नैतिक टकराव भी पैदा करता है। विपिन शर्मा और अन्य सहायक कलाकार भी इतने ज़मीनी लगते हैं कि लगता है जैसे आप किसी रियल लोकेशन पर किसी असली कहानी को देख रहे हों।

फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर बहुत ही subtle और emotional है। यह बिना ज़ोर दिए कहानी की emotional depth को बढ़ाता है। “प्रीत रे” जैसे गाने सीधे दिल में उतरते हैं और किरदारों की फीलिंग्स को शब्दों से पहले महसूस करवाते हैं। सिनेमैटोग्राफी साफ़-सुथरी है, किसी भी तरह की over-stylization से बचते हुए, कहानी को उसके असली रंगों में दिखाती है।

अगर फिल्म में कुछ कमज़ोरी दिखती है तो वो मेकअप और कुछ किरदारों के overly styled लुक्स हैं, जो थोड़ी देर के लिए आपको फिल्म की वास्तविकता से disconnect कर सकते हैं। लेकिन फिल्म की overall sincerity और performances इतने मजबूत हैं कि इन बातों को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है।

धड़क 2 एक ऐसी फिल्म है जो आपको सोचने पर मजबूर करती है — क्या आज भी हमारा समाज इतना आगे बढ़ चुका है कि प्यार को सिर्फ प्यार की तरह देख सके? या फिर नाम, जाति और परिवार की दीवारें अब भी दिलों को बांटती हैं? यह फिल्म सिर्फ एक लव स्टोरी नहीं, बल्कि उन लोगों की कहानी है जिनकी आवाज़ें आज भी अनसुनी हैं।

रेटिंग: ⭐️⭐️⭐️.5 (3.5/5)
एक शब्द में: Gut-wrenching

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